International Women’s Day: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को महिलाओं के अधिकारों, समानता और सशक्तिकरण के लिए मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1908 में न्यूयॉर्क में महिलाओं के विरोध प्रदर्शन से हुई थी। यह दिन महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मान देने और लैंगिक समानता की दिशा में आगे बढ़ने का प्रतीक है।
International Women’s Day 2025: हर साल 8 मार्च को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं के अधिकारों, समानता और सशक्तिकरण का प्रतीक है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि महिला दिवस 8 मार्च को ही क्यों मनाया जाता है? इसका इतिहास क्या है? यह केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि महिलाओं के संघर्ष और उनके हक की लड़ाई की कहानी बयां करता है। आइए जानते हैं कि इस दिन की शुरुआत कैसे हुई और यह वैश्विक आंदोलन कैसे बना।
महिला दिवस का इतिहास: कैसे हुई इसकी शुरुआत?
1. 1908: न्यूयॉर्क से उठी पहली आवाज
महिला दिवस की शुरुआत 1908 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर से हुई, जब हजारों महिलाओं ने बेहतर वेतन, कम काम के घंटे और वोट देने के अधिकार की मांग को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन किया। यह पहली बार था जब महिलाओं के हक में इतनी बड़ी आवाज उठी।
2. 1909: अमेरिका में पहला राष्ट्रीय महिला दिवस
इस आंदोलन के बाद 1909 में अमेरिका में पहला ‘राष्ट्रीय महिला दिवस’ (National Women’s Day) मनाया गया, जिसे सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने आयोजित किया था। इसे फरवरी के आखिरी रविवार को मनाया गया था।
3. 1910: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का प्रस्ताव
डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में 1910 में एक अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन हुआ, जहां जर्मनी की महिला नेता क्लारा जेटकिन ने ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाने का प्रस्ताव रखा। इसका उद्देश्य महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और समानता के लिए एक वैश्विक मंच तैयार करना था।
4. 1911: पहली बार कई देशों में महिला दिवस मनाया गया
1911 में पहली बार ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। उस समय इसे अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाता था। इस दौरान महिलाओं ने मतदान का अधिकार, सरकारी नौकरियों में समानता और भेदभाव खत्म करने की मांग की।
5. 1917: 8 मार्च को तय हुई तारीख
रूस में 1917 की क्रांति के दौरान महिलाओं ने 8 मार्च को बड़े पैमाने पर हड़ताल की, जिससे जार शासन हिल गया और महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। इस ऐतिहासिक आंदोलन के बाद संयुक्त राष्ट्र (UN) ने 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मान्यता दी।
महिला दिवस का महत्व: आज भी क्यों है जरूरी?
इतिहास से लेकर आज तक महिलाओं ने समानता, शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए लंबा सफर तय किया है। हालांकि, अब भी कई देशों में महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
इसलिए, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस केवल जश्न का दिन नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी दिन है। यह हमें याद दिलाता है कि जब तक लैंगिक समानता पूरी तरह हासिल नहीं होती, तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा।
भारत में कब हुई इसकी शुरूआत
भारत में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पहली बार 1975 में आधिकारिक रूप से मनाया गया, जब संयुक्त राष्ट्र (UN) ने इसे वैश्विक रूप से मान्यता दी। हालांकि, भारत में महिलाओं के अधिकारों और समानता को लेकर जागरूकता पहले से ही बढ़ रही थी। 20वीं सदी में सावित्रीबाई फुले, सरोजिनी नायडू और अन्य महिला नेताओं ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आज, भारत में 8 मार्च को महिला दिवस बड़े पैमाने पर सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं, कॉरपोरेट सेक्टर और सामाजिक संगठनों द्वारा मनाया जाता है, जिसमें महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न और लैंगिक समानता पर चर्चा की जाती है।